किसी मासूम को देखो … तो नजर यूँ रखना …
की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो …
बड़ी नाजुक है वो मासूम .... बहुत भोली है ....
क्या पता उसको तेरी नज़रों का … अंदाज न हो ?
तेरी उठती हुई … गिरती हुई ... पलकों की तहें …
जो तेरी साजिशों को .... सरेआम बयां करती हैं …
वो सिमटती है खुद .... बचा के नज़र .... यूँ तुझसे ....
अपने हंसने से कहीं … खुद वही बदनाम न हो …
वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल … लोगों का …
कई चौराहों पर.... वो रोज़ खड़े रहते हैं …
आँखें सिकती हैं … बिना डर के बेहयाई से ....
जैसे हर जिस्म .... जो गुजर था अभी .... "नंगा हो " …
खुद को इतना न बदल … कि तेरी पहचान मिटे ....
बहकी इन आदतों से यूँ तेरा ईमान मिटे …
अब तो रुक .... और बदल दे ये नज़र के नक़्शे …
इससे पहले की तेरा सच … और ये इंसान मिटे ....
की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो …
बड़ी नाजुक है वो मासूम .... बहुत भोली है ....
क्या पता उसको तेरी नज़रों का … अंदाज न हो ?
तेरी उठती हुई … गिरती हुई ... पलकों की तहें …
जो तेरी साजिशों को .... सरेआम बयां करती हैं …
वो सिमटती है खुद .... बचा के नज़र .... यूँ तुझसे ....
अपने हंसने से कहीं … खुद वही बदनाम न हो …
वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल … लोगों का …
कई चौराहों पर.... वो रोज़ खड़े रहते हैं …
आँखें सिकती हैं … बिना डर के बेहयाई से ....
जैसे हर जिस्म .... जो गुजर था अभी .... "नंगा हो " …
खुद को इतना न बदल … कि तेरी पहचान मिटे ....
बहकी इन आदतों से यूँ तेरा ईमान मिटे …
अब तो रुक .... और बदल दे ये नज़र के नक़्शे …
इससे पहले की तेरा सच … और ये इंसान मिटे ....