Poetic Rebellion .....

Saturday, December 20, 2014

काश की मैं भारतीय रह पाता ....

काश की मैं भारतीय रह पाता    ....
काश की
.... गरीबी के बचे हुए ३३ करोड़ में   …
.... निरक्षरता के झखझोड़ में  …
.... जिंदगी की बुनियादी जरूरतों में  ....
रिश्तों की इन महीन से डोर से बंधा  हुआ   ....
…  मैं भारतीय रह पाता    ....

काश की
.... औरतों की इज़्ज़त का मुद्दा ऊपर होता  ....
…. भ्रूण हत्या के खिलाफ कदम पहले उठते  ....
.... बेरोजगारी से लड़ने की आवाजें ज्यादा बेहतर होती  …
फंडामेंटल राइट्स के अलावा , फंडामेंटल ड्यूटी को भी समझ पाता
काश की मैं भारतीय रह पाता    ....

काश की
…… इस सरजमीं पर कोई पेट खाली न सोता  ....
….... रात , और सन्नाटों के बीच कोई घर अँधेरा न होता   …
…… बच्चों के हाथों में किताबें होती, बचपन के हाथ में कटोरा न होता  ....
खाकी कपड़ो से मिटटी की खुशबू आती  … करप्शन न नजर आता  …
काश की मैं भारतीय रह पाता    ....

काश की
....  मंदिर के मंत्रो से  .... मस्जिद की अज़ान से  …
....  गुरूद्वारे की अरदास से ....  चर्च की प्रार्थना से  …
… उठती हुई गुंंज को हम समझ पाते ....
और कोई नासमझ  ....  किसी को छोटा न समझता   .... नीचा न दिखाता  …
काश की मैं भारतीय रह पाता    ....



Sunday, December 14, 2014

गरीबों का मसीहा हूँ .... ये कहना काफी आसाँ है ....

तुम अगर साफ़गोई कि यहाँ पर बात करते हो ....
भला फिर वक़्त कि इन हरकतों से .... क्योँ ही डरते हो …

थपेड़े और भी आयेंगे .... यूँ तुम को गिराने को ....
कुल्हाड़ी और भी गहरी जड़ों को काट जाएंगी …
मगर ये सच नहीं है … तो उठो और सामने आओ …
ये आरोपों कि आंधी है … जरा लड़ के तो दिखलाओ …

गरीबों का मसीहा हूँ .... ये कहना काफी आसाँ है ....
बदलते वक़्त कि मैं ही दिशा हूँ … काफी आसाँ है …
मगर सैलाब में .... आंधी में खुद को थाम कर रखना …
अगर आता हो तुम को ये हुनर … तो ये भी बतलाओ …

Tuesday, December 9, 2014

किसी मासूम को देखो … तो नजर यूँ रखना : Respect Women

किसी मासूम को देखो  …  तो नजर यूँ रखना   …
की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो   …
बड़ी नाजुक है वो मासूम .... बहुत भोली है   ....
क्या पता उसको तेरी नज़रों का   … अंदाज न हो  ?

तेरी उठती हुई   … गिरती हुई   ...  पलकों की तहें   …
जो तेरी साजिशों को  .... सरेआम बयां करती हैं   …
वो सिमटती है खुद   ....  बचा के नज़र  .... यूँ तुझसे  ....
अपने हंसने से कहीं  … खुद वही बदनाम न हो   …

वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल  … लोगों का  …
कई चौराहों पर.... वो रोज़ खड़े रहते हैं   …
आँखें सिकती हैं  … बिना डर  के बेहयाई से   ....
जैसे हर जिस्म  .... जो गुजर था अभी  .... "नंगा हो "  …

खुद को इतना न बदल  … कि तेरी पहचान मिटे  ....
बहकी इन आदतों से यूँ  तेरा ईमान मिटे  …
अब तो रुक  ....  और बदल दे ये नज़र के नक़्शे   …
इससे पहले की तेरा सच  … और ये इंसान मिटे  ....


Wednesday, December 3, 2014

लड़कपन थक सा जाता है ... जिंदगी हार जाती है

लड़कपन थक सा जाता है ... जिंदगी हार जाती है


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मेरे चारों तरफ एक धुंध है  ……  या शायद सब के जानिब है  ....
कि मंजिल जो भी दिखती है  … बदलती है  ....
की रिश्ते जो भी जुड़ते हैं  … वो कसते हैं  …
की लहरें आती रहती हैं  … भवंर सन्नाटा करते हैं  …
की सारी ख्वाहिशें   ....  तारीख से आँखें चुराती हैं  ....
फिर कहीं थक सी जातीं हैं   ....  फिर कहीं थक सी जातीं हैं   ....
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हमें फिर लगने लगता है   … कि शायद ये नियति है   …
उम्र का वो दौर  … जब  ....
खातों में खुशियोँ की चितायें फूँक कर  .... कुछ धन जमा कर  …
आ रहे उस कल में   … खुद को थाम पाएंगे   …
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हंसी आती है ऐसी सोच पर   … पर ढीढता देखो   …
सभी इस राह पर  .... दौड़े चलें हैं  ....
लूट कर  ....   और रौंद कर   … सपनो की ख्वाहिश को   ....
ख़ुशी फिर खो सी जाती है   .... लड़कपन थक सा जाता है  ....
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यहीं पर ख़त्म होता है  ....  सफर का अंत
 .... और आवाज़ भी कुछ थम सी जाती है  .... हवाओं की  ....
यहीं पर करवटों में नींद का आगाज़ होता है   …
दबे पाओं … चली आती है  ....  चुप से मौत भी  .... खटिया पर  .... बुझी आँखों में उन  …
फिर घडी रुक सी जाती है   .... धड़कनें थम सी जाती हैं   … और जिंदगी हार जाती है
और जिंदगी हार जाती है  ……… और जिंदगी हार जाती है   … ।