न सिर्फ एक शब्द है … न सिर्फ एक रूप है …
न सिर्फ एक नाम है .... न सिर्फ एक मर्म है …
ये साज वो , कि डोर पे , जुड़े हुए हैं घर यहाँ ....
ये राग वो , जो धड़कनो , को दे रहे नयी दिशा …
ये श्याम की है तान भी .... ये राम का है मान भी …
कभी सती … कभी रथी … कभी प्रकाण्ड ज्ञान सी …
जो द्रढ़ लिया , तो काल क्या .... जो व्रत लिया , तो हाल क्या ....
ये वत्सला … ये निर्मला … ये रौद्र रूप काल का …
जो मातु है, तो पुत्र पे , है साया वज्र ढ़ाल का …
जो प्रेमिका तो हाल है … ज्योँ राधिका का हाल था …
जो पुत्री है .... तो है गुरुर … पिता की आन बान का …
जो इस सती ने ठान ली .... तो शिव की भी मजाल क्या …
नमामि है तुम्हें .... की तुम हो सृष्टि … और तुम्हीं प्रलय ....
तुम्हारी गोद से खिले हैं सब .... तुम्हीं में जा मिलें …