Poetic Rebellion .....

Sunday, March 15, 2015

इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।

मैं खुद के … एक से ज्यादा वजूद रखता हूँ …
इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।
अपने चारों तरफ की स्याह सियासत से डरा …
तमाम सच को दफ़न … खुद को रूह रखता हूँ |

Sunday, March 8, 2015

नमामि है तुम्हें .... की तुम हो सृष्टि … और तुम्हीं प्रलय ....

न सिर्फ एक शब्द है    … न सिर्फ एक रूप है   …
न सिर्फ एक नाम है    .... न सिर्फ एक मर्म है  …

ये साज वो , कि  डोर पे , जुड़े हुए हैं घर यहाँ   ....
ये राग वो , जो धड़कनो ,  को दे रहे नयी दिशा  …

ये श्याम की है तान भी   .... ये राम का है मान भी   …
कभी सती   … कभी रथी  … कभी प्रकाण्ड ज्ञान सी   …

जो द्रढ़ लिया , तो काल क्या   .... जो व्रत लिया , तो हाल क्या  ....
ये वत्सला   … ये निर्मला  … ये रौद्र रूप काल का   …

जो मातु है, तो पुत्र पे , है साया वज्र ढ़ाल का  …
जो प्रेमिका तो हाल है   … ज्योँ राधिका का हाल था  …
जो पुत्री है  .... तो है गुरुर  … पिता की आन बान का  …
जो इस सती ने ठान ली   .... तो शिव की भी मजाल क्या  …

नमामि है तुम्हें    .... की तुम हो सृष्टि  … और तुम्हीं प्रलय  ....
तुम्हारी गोद से खिले हैं सब   ....  तुम्हीं में जा मिलें   …