Poetic Rebellion .....

Saturday, December 21, 2013

Prove to be a man

तुम अगर साफ़गोई कि यहाँ पर बात करते हो ....
भला फिर वक़्त कि इन हरकतों से .... क्योँ ही डरते हो …

थपेड़े और भी आयेंगे .... यूँ तुम को गिराने को ....
कुल्हाड़ी और भी गहरी जड़ों को काट जाएंगी …
मगर ये सच नहीं है … तो उठो और सामने आओ …
ये आरोपों कि आंधी है … जरा लड़ के तो दिखलाओ …

गरीबों का मसीहा हूँ .... ये कहना काफी आसाँ है ....
बदलते वक़्त कि मैं ही दिशा हूँ … काफी आसाँ है …
मगर सैलाब में .... आंधी में खुद को थाम कर रखना …
अगर आता हो तुम को ये हुनर … तो ये भी बतलाओ …

कोई तो बात गहरी है …

बड़ी हलचल है राहों में .... कोई तो बात गहरी है …
तमाशा देखती तो है .... मगर ये भीड़ बहरी है …
किसी को है नहीं मालुम .... मज़मा क्योँ है ये सारा …
सुना है बीच में शायद … किसी कि लाश रखी है ।

है गुस्सा तो बहुत आवाम में .... कुछ कर गुजारने का …
मगर आवाज पहली कौन हो .... ये एक पहेली है …
कि पाना है यहाँ पर .... हर किसी को .... एक बेहतर कल ....
मगर आगे चलेगा कौन .... सब कि साँस ठहरीं है …

Friday, December 20, 2013

न हुस्न का चेहरा देख सके... न उसका बसेरा देख सके ..

ना वक़्त का पहरा देख सके... ना हुस्न का चेहरा देख सके...
ना खबर मिली ... ना राह मिली .... ना कोई पगली हवा चली ..

हम ऐसे उलझे राहों में , इन बातों में ... न ख्वाब सुनहरा देख सके ...
ना पता मिला .. ना कोई ख़त.... ना कोई कहानी किस्सा था ..
बस एक झलक थी आँखों में ... बस उसे लिए फिरते रहते ...
इन राहों में उन राहों में...


पर तभी अचानक नींद
खुली.... और ये जाना... सब ख़तम हुआ सोते सोते...
उफ़ क्या कहते बस...ये जाना ...
न हुस्न का चेहरा देख सके... न उसका बसेरा देख सके ...

Thursday, December 19, 2013

A political Cyclone

बीजेपी बहुत व्यस्त है … कांग्रेस बहुत पस्त है … 
और लोग कहते हैं … केजरी जबर्दस्त है … 
इन सब के बीच दिल्ली कि जनता … 
बेचारी दिल्ली कि जनता … बहुत त्रस्त है … । 

लोग फेसबुक पे लड़ते हैँ … दोस्तों से झगड़ते हैं … 
बीजेपी अच्छी है … केजरी सच्चा है … 
राहुल तो अभी कच्चा है (which is accepted without fight  )
ऐसी बातों पर सर पटकते हैं … । 

सारे के सारे पॉलिटिशियन हो गए हैं …
इधर उधर से … नेट से … जो मिलता है … चेपते हैं …
दो चार बड़े वाले ऐसे भी हैं … जो फेसबुक खोलते हैं …
पहली पोस्ट का, लास्ट कमेंट पढ़ के …
उसे लिखने वाले कि सर … देश द्रोह का मुकदमा ठोकते हैं ।

पिछले महीने मोदी का तूफ़ान चल रहा था …
इस महीने केजरी साइक्लोन बन गए हैं …
और हम सब , अपनी अपनी टाइम पास कि , रंग बिरंगी पतंगों को लिए ....
इस पोस्ट से उस पोस्ट … उस पोस्ट से इस पोस्ट … पेंच लड़ाए फिरते हैं …

चुनावी पत्रकारिता का भी बाजार गर्म है …
सच का पता करना … हर चूजे का अब धर्म है ....
कहाँ कहाँ से फ़ोटो लाते हैं … लगाते हैं … हटते हैं …
अब तो चाय कि चुस्कियों में … हर चाय वाले में मोदी ही नजर आते हैं ।

चुनाव के चक्कर में … लड़कियों ने फ़ोटो लगानी छोड़ दी हैं ....
जैसे क्रिकेट से पहले मूवी नहीं रिलीज़ होती थी …
वैसे ही लाइक के चक्कर में फ़ोटो रिलीज़ होनी बंद हो गयी हैं
लड़कियां इस पोलिटिकल कांस्पीरेसी बता रही हैं ....
और अगला धरना फेसबुक पे देने जा रही हैं ....

अगर यही माहोल रहा है … तो फेसबुक सुनसान हो जाएगा …
चुनाव तो ६ महीने में ख़तम हो जायेंगे …मगर ईमान बईमान हो जाएगा …
गर्लफ्रेंड तो फ्रैन्डलिस्ट में रह नहीं जाएंगी ....
और आखिरकार आर्टिकल ३७७ का काम हो जाएगा ....

आखरी लाइन से खुश तो तुम बहुत होगे लल्लन .... 

Monday, December 16, 2013

Love .... In a poetic way ..


मेरी चाहत में कैसी हैं ... ये दूरियाँ ...
पास बैठी हो तुम ... पर ये मजबूरियां ...
बेवजह ये नहीं ... बेखबर तुम नहीं ..
होठ चलते हैं पर ..कुछ वो कहते नहीं ..
चोरी चोरी से यूँ ... चुपके चुपके से यूँ ..
देखता हूँ तुम्हें ... ऐसे डर डर के क्योँ ..

मुझको छूती हुई ... तेरी कमसिन हंसी ..
बातों बातों में आँचल की नरमी छुई ..
उफ़ ये क्या हो रहा है ... ये क्या राज है ..
सारा माहौल ऐसे क्योँ मोहताज है ...

जिस्म तेरी छुअन से हैं जलता हुआ ...
आंसुओं से धुवाँ हैं निकलता हुआ ...
ये निगाहें ह्या ... तेरा ल्फ्जें बयां ...
तेरी हर एक अदा .. पे खुद है फ़िदा ...
फिर भला क्योँ न मैं इश्क तुझ से करूँ ...
चाहए दुनिया ... इसे माने ..मेरी खता ...

NAAP Party

तू मेरा काम कर  … मैं तेरी नाँव हूँ   ....
पेड़ है स्वार्थ का  … मतलबी छावं हूँ   …
आज कर दे मदत  … पर न उम्मीद रख  …
गिरगिटों से भरा है  .... मैं वो गावँ हूँ  …

तू है मासूम तो  … सुन  … ये गाली है एक  …
इस ज़माने कि फितरत पे  … कालिख है एक   …
कोई कुत्ता है गर  … तू कमीने सा बन   …
हरकतों से जता  … तेरा वालिद हूँ मैं  … 

Tuesday, December 10, 2013

आम आदमी पार्टी : सपनो का एक हवामहल

The best thing which can happen to a democracy is to have powerful opposition and the aggressive government. I don't know where I will be fit in... I pray for the best of our country... and hope... that i am introspecting my self ... and my party ...

मैं बेजारियों का एक पुलिंदा बन न जाऊँ   …
कहीं मैं शाम का सूरज बनूँ  … और ढल न जाऊँ  …
मैं डरता हूँ  … मेरे वादों में फितरत आ न जाए  …
जिन्हें बेज़ा कहा है  … मैं उन्हीं में मिल न जाऊँ  ।

बड़ी बेचैनियों के साथ  … मैं भी जी रहा हूँ  …
अकेले हूँ मंगर रह रह के बातें कर रहा हूँ  …
ये सपनो कि दुकां  … मेरी सजी तो खूब लेकिन  …
जिन्हें सपने दिए हैं   … मैं उन्हीं को छल न जाऊँ  … ।
जिन्हें बेज़ा कहा है  … मैं उन्हीं में मिल न जाऊँ  ।


From The heart of Kejariwal .....


Note: I do not support AAP (At least Till 2014 General Election)

Monday, December 9, 2013

ये एक पड़ाव है … इसे अपना शहर मत समझो ।

ख़ुशी के जश्न को सालों का सफ़र मत समझो .... 
ये एक पड़ाव है … इसे अपना शहर मत समझो । 

कभी जो चाँद पर पहुचो तो तुम्हें ध्यान रहे .... 
खुदा नवाज रहा है … इसे अपना हुनर मत समझो 

कल तलक मुझको लोगों कि दरकार थी ....

कल तलक चाँद जिसकी खिलाफत में था  ....
आज उसकी ही चौखट पे रोशन हुआ  ....

कल तलक जो जगह सर्द वीरान थी  ....
आज उमड़ा चला जा रहा काफिला  …

कल तलक जिसको कोशिश से परहेज था  …
आज हिस्से कि खातिर वो मुझ से मिला  …

कल तलक मुझको लोगों कि दरकार थी  …
बंद दरवाजे थे  .... मौन मुझको मिला   ....

कल तलक मेरी किस्मत बगावत पे थी  …
जिंदगी रात थी  … रात का सिलसिला   …

कल तलक मेरी  .... आमद भी गुमनाम थी  …
आज हर आदमी मुझसे आ के मिला  …


Disclaimer : It's is just a poetry not from AAP fan .. but from a person who can write few lines ....

Saturday, November 30, 2013

याद रखना कि हम में भी है एक कशिश

नजरें खामोश सी देखती थी उसे  …
काश होठों में हलचल का आगाज़ हो  …
मेरी धड़कन मैं घुल जाए उसकी सदा  …
मेरे साये में भी उसका एहसास हो   ।

सीढ़ियों पर थिरकते वो उसके कदम  …
चेहरा यादों कि मुस्कान खुद पे लिए  …
मेरे एहसास से मुस्कुराती हुई  ....
जैसे मुझको बुलाने का अंदाज हो  ।

हुश्न वाले तुझे खूब जलवा मिला  …
मेरे मासूम दिल पर गिराते रहो  …
हम मिले ही नहीं थे कभी उम्र में  …
सोच लो सोच कर मुस्कुराते रहो ।

याद रखना कि हम में भी है एक कशिश  …
तुझको तेरे बदन से चुरा लायेंगे  …
तेरी आँखों में छायेगा मेरा बदन  …
चाहे जितना मुझे तुम जलती रहो  ।

Thursday, November 28, 2013

Media : And the changing pattern ...

मेरे लूटने के आलम को भले तुम भूल जाना पर   ....
मेरी इस मौत का उस न्यूज़ में  चर्चा नहीं करना   ....
जहाँ पर मीडिया ने रूह तक है बेच दी अपनी  ....
वहाँ मुझको भी ब्रेकिंग न्यूज़ का दर्जा नहीं देना  …

वजह इस मौत कि दुनिया भले ही कुछ समझ ले पर  …
मैं इतना जनता हूँ मेरे कारिंदो कि गलती है  ....
अभी हँस लो तुम्हारा वक़्त है  .... हँसना भी वाजिब है  …
मगर हर पल यहाँ पर वक़्त कि फितरत बदलती है  

Wednesday, November 27, 2013

दिली रिस्तों में गाठें … यूँ भी साँसें छीन लेती हैं

बहुत आसान है रिश्ते बना लेने सफ़र में यूँ   ....
अगर बस दूर से ही हाथ का हिलना हिलना है  …
मगर ये लूट लेते हैं ख़ुशी भी , सारी दुनिया भी  ....
दिली रिस्तों में गाठें  … यूँ भी साँसें छीन लेती हैं  …

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मैं वक़्त से लड़ते लड़ते ....कहीं थक सा गया हूँ ... अब ..
मेरे मेहंमा .. मेरी आजादियों का एक पता ..दे दो ..
मेरी यादों की तबियत ... फिर वहीँ पर जा रुकी देखो ..
मुझे एक हौसला दे दो .. नया सा सिलसिला दे दो ..

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Tuesday, November 26, 2013

An Evening in Bottle ...

मुक्मल ख्वाहिशें हो जाएँगी तो क्या जियेंगे   …।
न होगा दर्दे गम कोई   .... तो बोलो क्योँ पियेंगे  ....

जरा प्यासी रहे  होठों कि तबियत ये मुनासिब है  …
बड़ी तौहीन हो जायगी गर  … जी भर पियेंगे  .... ।

Saturday, November 23, 2013

Pointers ....

गुमशुदा यार है खामोश हैं मंजर देखो............
उसपे रुठी है डगर सुना सफर है देखो.............
हाले इस दौर में गर तुमको डरा जाय कोई.......
अपने काँधे पे मेरे हाथ का असर देखो.........


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बहुत unchi उड़ने आदतन naakam होती हैं, ,
बहुत उम्दा sahar में वारदातें आम होती हैं 

तू जीन्दा है तो मतलब ये नहीं की तू सलामत है ,
यहाँ पर मौत की आमद तो सुबहो शाम होती है |




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बहुत सी खिड़कियों से वो नजारा आम था  … 
कल जो मशहूर था  … वो आज यूँ बदनाम था  .... 
और पत्थर भी बहुत से गिरे थे उस पर तब  .... 

किसने सोचा था तब  … कि वो नेक था  … ईमान था  । 


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न हुस्न का चेहरा देख सके... न उसका बसेरा देख सके ...

ना वक़्त का पहरा देख सके... ना हुस्न का चेहरा देख सके...
ना खबर मिली ... ना राह मिली .... ना कोई पगली हवा चली ..
हम ऐसे उलझे राहों में , इन बातों में ... न ख्वाब सुनहरा देख सके ...
ना पता मिला .. ना कोई ख़त.... ना कोई कहानी किस्सा था ..
बस एक झलक थी आँखों में ... बस उसे लिए फिरते रहते ...
इन राहों में उन राहों में...
पर तभी अचानक नींद
खुली.... और ये जाना... सब ख़तम हुआ सोते सोते...
उफ़ क्या कहते बस...ये जाना ...
न हुस्न का चेहरा देख सके... न उसका बसेरा देख सके ...

आम आदमी पार्टी .... Worried ....Skeptical...Confused


जिसे अपना समझ कर  .... घर मैं लाया खुद ही अपने  …
उसीने  मौत का मेरी फ़ातिहा पढ़ दिया क्योँ  …

जहाँ नाजुक बहुत थी  .... नफ्ज मेरी धड़कनों कि  ....
वहीँ पर हाथ जालिम  … जाने उसने रख दिया  क्योँ   …


Thursday, November 21, 2013

AAP : Aam Aadmi Party : D real Challenges

तुम अगर साफ़गोई कि यहाँ पर बात करते हो  ....
भला फिर वक़्त कि इन हरकतों से  .... क्योँ ही डरते हो  …

थपेड़े और भी आयेंगे  .... यूँ तुम को गिराने को  ....
कुल्हाड़ी और भी गहरी जड़ों को काट जाएंगी  …
मगर ये सच नहीं है  … तो उठो और सामने  आओ  …
ये आरोपों कि आंधी है  … जरा लड़ के  तो दिखलाओ   …

गरीबों का मसीहा हूँ  .... ये कहना काफी आसाँ है  ....
बदलते वक़्त कि मैं ही दिशा हूँ  … काफी आसाँ  है  …
मगर सैलाब में  ....  आंधी में खुद को थाम कर रखना  …
अगर आता हो तुम को ये हुनर  … तो ये भी बतलाओ  …

AAP in your Favor

वक़्त पर बेवजह मत उठा उंगलियां  ....
तेरा दुनिया से ताल्लुक बिगड़ जाएगा  ....
कुछ तो मिलने मिलाने कि आदत बना  …
खुद के साये से वरना बिछुड़ जाएगा  …

सोच ले फिर बता  .... तुझको क्या चाहिए  …
हार कर मौत  .... या जिंदगी चाहिए  …
सुन सियासत  कि जादूगरी सीख ले  ....
वरना  प्यादा भी तुझको हरा जाएगा  ....

AAP --> Is it just a beginning

तवायफ़  कि मोहल्ले में  … घुटन होता बताता है  ....
नया कोई मोहल्ले में  ....  शराफ़त  से नहाया है  ....
जरा दो पल बिताने दो   .... उसे आबो हवा में  इस  …
फ़िजां ऐसा बना देगी  …  कि जैसे हमनवाया है  …



Sunday, November 17, 2013

और एक रोज ये सपने मरे पड़े होंगे …

कुछ तो मालुम हुआ अब मुझे तजुर्बे से  ....
ये भले दूर से मासूम  नजर आती है  ....
पर जवानी  का  अगर पावँ सम्भाला न गया  ....
ये समझ लीजिये  .... नासूर बना जाती है  ....

कुछ कदम तक तो आपके बगल खड़े होंगे  …
कल यही लोग किसी और संग खड़े होंगे  …
परसों होगा कहीं पे और ठिकाना इनका
और एक रोज ये सपने मरे पड़े होंगे  …।

तमाशा देखती तो है .... मगर ये भीड़ बहरी है …

बड़ी हलचल है राहों में  .... कोई तो बात गहरी है  …
तमाशा देखती तो है  .... मगर ये भीड़  बहरी  है   …
किसी को है नहीं मालुम  .... मज़मा  क्योँ है ये सारा  …
सुना  है  बीच में  शायद  … किसी कि लाश  रखी  है  ।

है गुस्सा तो बहुत आवाम में  .... कुछ कर गुजारने का  …
मगर आवाज पहली कौन हो  .... ये एक पहेली है  …
कि पाना है यहाँ पर  .... हर किसी को  .... एक बेहतर कल  ....
मगर  आगे चलेगा कौन  .... सब कि साँस  ठहरीं  है  …


Wednesday, November 13, 2013

दिल की धड़कन में सदा तेरी लिए फिरता हूं |

जब तलक रूप का दीदार नहीं करती है ..
तीर दिल के ये नजर आर पार करती है |
मानो साँसों को तेरी आह की जरुरत है ..
दिल की धड़कन में सदा तेरी लिए फिरता हूं |

सारी दुनिया की हर निगाह है जिसके जानिब...
वो तेरे पावँ तले सर कओ झुकता साहिब ..
लब का हिलना है तेरे दूर... मुस्कुराती भी नहीं ..
फिर भी सपनो में बसा .... तुझको तके जाता हूं..

ये मेरे इश्क की ताबीर नजर आती है ..
एक कमसिन सी हंसी मुझको जगा जाती है ..
ख्वाब में ही ये सही .. होता है अक्सर जालिम ..
मुस्कुराता तो हूं ..मैं अपने आप के बस में ..

सुन.. ऐ मेरी मोहब्बत ... नज़रों का सुन तकाजा ..
महरूम हूं ख़ुशी से ..दीदार का हूं .. प्यासा ..
ढा और न सितम तू ... आँखों की प्यास भर दे ..
लम्हों को दे के अपने ..ले जिंदगी मुझी से ..

Saturday, November 9, 2013

ऐसी शोहरत पे अपना वक़्त मत बर्बाद करो

खुद के चेहरे पे नजर हो.… तो सवालात करो.....
हो सके तो कभी.… खुद से भी मुलाक़ात करो.।

संगे दिल हैं तमाम लोग तेरी बस्ती के ....
अपनी चौखट से मगर आज कि शुरुआत करो …

तेरा पैसा, तेरी शोहरत , तेरा रुतबा कैसा ?
साथ बैठे हो मेरे .... कुछ तो नयी बात करो ....

कुदरतन हस्र जो होगा .... वो खुद देखेगा ....
बेवजह  तुम क्योँ जमाने का हर हिसाब करो.... ।

तुम से पहले भी कई सूरमां …… मिटे हैं यहाँ …
ऐसी शोहरत पे अपना वक़्त मत बर्बाद करो …… ।


Saturday, August 3, 2013

कहीं जिंदगी की यूँ दौड़ में

कहीं जिंदगी की यूँ दौड़ में ... कहीं हसरतों के नए मोड़ में ..
कहीं यूँ न हो .. भूले रहें ... हम कौन हैं ? .. और किस लिए .. ?
कब से खड़े हैं ... यूँ यहीं ...इस बेबसी की छावं में ...
हम सब जड़े हैं इस जगह .. कमजोर हैं .. क्या जायेंगे ..और किस तरफ ?

बस बेबसी में हैं देखते ..कभी इस तरफ ... कभी उस तरफ ..
कोई आएगा .. ले जाएगा .. इस राह में ... उस राह में ..
या इस तरफ .. या उस तरफ .. इस गावं में ... उस गावं में ...
या बस किसी शमशान में ... या बस किसी शमशान में ...

Sunday, July 21, 2013

A new start may be .....

मैं अगर फैसले के वक़्त भी ... डरता ही रह गया ..
तो मेरी आत्मा की मौत का मंजर यहीं होगा ...

कल अगर फैसले मेरे .. मुझे देंगे दगाएं भी ...
तो मेरी कोशिशों को कम से कम गिला नहीं होगा ..


ये कहीं भी नहीं लिखा है की हर एक चाल जीत हो ..
कुछ भी न हो ... मंजिल से थोडा फासला ही कम होगा ..

Wednesday, July 17, 2013

The Beginning of a story ....

For A Change ...

चाहता तू भी तो है. ...हर सांस में उभारना ...
पर द्वन्द तेरे मन का .. तुझे पीछे खीचता है।
की लोग क्या कहेंगे .... गर हार तूने पायी ...
और हार का ये डर ..की तूने जीत भी गवाईं  ।

ख्वाहिश में था समंदर .. दरिया में  आ के सिमटा ..
छूना  था आसमान को ... और बादलों में  भटका ..
ये शर्म तेरी तुझको ... शर्मिन्दगी  ही देगी ..
गर जीतना है तुझको .. बेशर्म बन के लड़ना ..
 

Friday, June 14, 2013

अजनबी शहर की बात

अजनबी शहर में ... अजनबी रास्ते ..
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ... ।

जब परेशान था .. दिल का मंजर मेरे ..
तब हवाओं ने सरगम की धुन छेड़ दी ... ।
थी तड़प जब निगाहों मैं ख़्वाबों की कुछ ..
नींद बैरन हुई .. जागते हम रहे .. ।

इस पराये शहर की हवा में मुझे ...
एक घुटन का है अहसास होता रहा ..।
उसपे गम ये जुदाई का पागल किये ..
होंठ प्यासे हुए ... हम तरसते रहे ..।

Thursday, June 13, 2013

Nitish Kumar To Narendra Modi :

तुम्हारे हक में हम बोलें ... तो क्या बोलें ...
की अब चुपचाप रह कर ... रह गुजर आसन लगती है ..।

तुम्हारी जिस अदा पर ... और खता पर .. हम तुम्हारे थे…
वही बातें ....तुम्हारे हर्फ़ पर इल्जाम लगती हैं ... ।

तुम्हारे साथ चल कर ... मंजिलों का अब भरोसा क्या ...
की अब गैरों की बाहें थामनी ... आसन लगती है ...

Dont do this Sir... :)

Saturday, June 8, 2013

कुछ कही ... अनकही सी .....

आज फिर से मैं उसी कमरे में बैठ हूँ ...जिसके बारे में मेरे घर में कहा करते थे,
पुरोहित जी ने कहा है की यहाँ .. मत बैठो .. मन में शादी के ख्यालात उभर आयेंगे |

तब ये लगता था की बेवजह हैं बातें सारी ... कुछ नहीं होता है इन बेफुजूल किस्सों का ..
आज जब खुद पे नजर डालता हूँ तो मुस्कुराता हूँ .... सब को मालुम था .. पहले से ही .. की मैं ऐसा हूँ |

या ये कुसूर है ... इस बेजुबान कमरे का .., जिसकी  आहट में भी ...बस इश्क के झोंके आये ..
जिसने साँसों में मेरी इतनी मुहब्बत भर दी .. की जब भी आंखें झुकी ... बस हुश्न  से ही टकराए  |


To Be Contd.....

Thursday, June 6, 2013

A life which goes on....

अभी तुम्हारे साथ तो कुछ पल बीते हैं ...
अभी तो जीने को ये जिंदगी बाकी है ...
...
अभी तो बस हम चन्द कदम ही साथ चलें हैं ...
अभी तो मिलने को ये गुलिस्तान बाकी हैं ..

अभी तो हमने छुट पुट साज संभाले हैं ..
अभी न जाने कितने रिश्ते बाकी हैं ..

अभी तो खुशियों की बस डोर बनायीं है ..
अभी तो इसमें जुड़ते जाना बाकी है ..

अभी तो धड़कन ने उस धड़कन को पहचाना है ...
अभी तो सात जनम का साथ निभाना बाकी है ...

अभी तो सात जनम का साथ निभाना बाकी है ...
अभी तो जीने को ये जिंदगी बाकी है ...
 

Saturday, June 1, 2013

एक खामोश सी चाहत ..

कुछ ख्वाब हैं .... कुछ हसरतें ...कुछ सिलवटें ...पलकें ..लिए ..
है आरजू ...तारों ...की भी .. और चाँद चेहरे पे चले ..
पर दरम्यान ...कुछ दर्द हैं ...हालत के कुछ रात के ..
है एक दिन की चांदनी ...ये अब ढले या तब ढले ..

उफ़ क्या नसीबा है मेरा .... पैरों में है ..थिरकन भरी ..
सिहरन लिए हैं ...उंगलियाँ ..हर शख्स को छूती हुई ..
हर रूह से मिलती हुई ... हर लफ्ज में जलती हुई ..
उफ़ क्या शरारत ऐ खुद ... ये क्या किया मालिक मेरे ...
जब जिस्म इतना सर्द है .. जस्बात क्योँ दहका दिए ..

न अश्क हैं ..न दर्द है ..फिर धडकनें रुखी सी क्योँ ..
जब सब खड़े हैं भीगते .. फिर रूह है सूखी सी क्योँ ..
या मौत दे या जिंदगी ... ये बीच का क्या माजरा ..
मासूम से ख़्वाबों को क्योँ .. है देखता मिटते हुए ..

ये बेजिझक माहौल ..हम पे बेहयाई का जुनूं ..
यूँ झूम कर ...यूँ नाचकर .. है मिल रहा सब को सुकूं ..
पर रूह फिर भी चुप है क्योँ ... खामोश सी हंसती हुई ..
नज़रों की सारी ख्वाहिशें .. पलकों से क्योँ ढकती हुई ..

चल उठ ये बाहें ले .. की हम सब साथ में सजदा करें ..
मुमकिन तो है ये भी ... की कल हम फिर मिलें या न मिलें ..
फिर क्योँ झिझकना ..जिंदगी से .. क्या शिकायत आप से ..
है एक दिन की गुफ्तगूँ .. ये अब ढले या तब ढले ..


Love .... In a poetic way ..

मेरी चाहत में कैसी हैं ... ये दूरियाँ ...
पास बैठी हो तुम ... पर ये मजबूरियां ...
बेवजह ये नहीं ... बेखबर तुम नहीं ..
होठ चलते हैं पर ..कुछ वो कहते नहीं ..
चोरी चोरी से यूँ ... चुपके चुपके से यूँ ..
देखता हूँ तुम्हें ... ऐसे डर डर के क्योँ ..

मुझको छूती हुई ... तेरी कमसिन हंसी ..
बातों बातों में आँचल की नरमी छुई ..
उफ़ ये क्या हो रहा है ... ये क्या राज है ..
सारा माहौल ऐसे क्योँ मोहताज है ...


जिस्म तेरी छुअन से हैं जलता हुआ ...
आंसुओं से धुवाँ हैं निकलता हुआ ...
ये निगाहें ह्या ... तेरा ल्फ्जें बयां ...
तेरी हर एक अदा .. पे खुद है फ़िदा ...
फिर भला क्योँ न मैं इश्क तुझ से करूँ ...
चाहए दुनिया ... इसे माने ..मेरी खता ...

कवितायें ... जो अनसुनी हैं ... अनकहीं हैं ..

ये ख़्वाबों का सागर .... ये चाहत की कश्ती ...
बड़े हौले हौले बहा ले चलेगे ..
यूँ तूफानी लहरों से डरना भी कैसा ...
इन्हें भी मोहब्बत ... सिखाते चलेंगे ...
इन्हें भी मोहब्बत ... सिखाते चलेंगे ...

कई बार आँखों में परवाज छाई ...
धडकते दिलों से ये आवाज आई ...
ये मायूस चेहरा ... ये बचकानी बातें ..
ये जस्बात कब तक छुपाते चलेंगे ...
ये जस्बात कब तक छुपाते चलेंगे ...

एक कविता .... अतीत के पन्नो से ..

थक गया है बदन .... थक गयी है नजर…
पर न ख़्वाबों का है .... आज भी कुछ पत।
जाने किस रात की कौन सी नींद तक ...
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..

हर गली हर सहर .. हर नयी शाम से।
हर कली ..फूल ... पलकों की हर छावं से ..
फिर से उम्मीद की सांसें हैं मांग ली ..
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...

Sunday, April 7, 2013

जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

शाम बाँहों में थी .. आँख को नम किये ..
जैसे हर पल मुझे रोकना चाहती ..
उसके चहरे पे छाई कैसी नमी ..
जैसे नज़रों से कुछ टोकना चाहती ..

आइये पास से कुछ नज़ारे करें ..
दूर से ही यूँ कब तक इशारे करें ..
कल तो नज़रों से भी दूर हो जायेंगी ..
मेरी बाहें तुम्हें .. थामना चाहती ..

एक ही सांस में तुमको भर लेंगे हम ..
अपनी धड़कन की हर एक सदा में सनम
उसपे पल पल ये एहसास होगा तेरा ..
दूर रह के भी तू साथ है आज भी ...

अब तो कुछ भी नहीं आंसुओं के परे ..
छोड़ कर क्या निशानी चला जाऊं में ..
ताकी हर पल तू मुझको भी दोहराये यूँ ..
जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...
अपनी रातों को भी हम तेरे नाम लिखते हैं ...

कैसे कैसे हैं ख्यालात ये दिल मैं मेरे ...
आँसूं बन बन के छलकते हैं ये जस्बात तेरे ...
करवटों में ये पूरी रात गुजर जाती है ..
मन का अब चैनो अमन तेरे नाम लिखते हैं ..

कैसे जर्रे हैं भटकने भी नहीं देते हमको ..
कभी तो देखते हैं तुम को और कभी गम को ..
क्योँ अपने दरम्यान ही .. बंधनों की दुरी है ..
इन पनाहों को ... आखिरी सलाम लिखते हैं ...

कसमसाहट से भरी ये घडी गुजर जाए ..
भले सांसों की मेरी हर लड़ी बिखर जाए ...
तनहा रह के ये जिंदगी नहीं बिताएंगे ..
लो कोरे दिल पे आज तेरा नाम लिखते हैं ...

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...
अपनी रातों को भी हम तेरे नाम लिखते हैं ...

Friday, March 1, 2013

one liners

कुछ तेरे हुश्न की मासूम ..शरारत  ने कहा .., कुछ लरजते हुए होठों के इशारों ने कहा .. ।
कुछ तेरे आँखों में  घुमड़े उन सवालों ने कहा .., कुछ तेरी बेझिझक बालों की लटें कहने लगीं .. ।
जिंदगी यूँ ही नहीं है कि परेशाँ हों लें ... , ऐसी बेकार सी बातों में ही फ़ना हो लें ... ।
जिसकी जानिब यूं सारे काम करते हैं ..., कभी तो उसके साथ जिंदगी की पल जी लें ... ।

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बहुत ऊँची उड़ानें ...आदतन नाकाम होती हैं ...
बहुत उम्दा सहर मैं वारदातें आम होती हैं ...
वो जिन्दा है तो मतलब ये नहीं कि… वो सलामत है ..
यहाँ पैर मौत की आमद तो सुबहो शाम होती हैं ...

Tuesday, February 19, 2013

One Liners

मैं बहुत देर तक ... ठहरा रहा .. उस राह में ..
कई बार मुड़ के देखा भी .. चारों तरफ ..
हर बार बस यूँ ही लगा ... तुम हो यहीं .. हाँ बस यहीं ..
तो क्या हुआ ... गर होश में ...दिखते नहीं .. तुम हो यहीं ..हाँ बस यहीं ..