ख्वाहिशे यार में निकले .... तो जान क्या शय है ?
यूँ ही बेकार चली जाये …… तो बुरा लगता है ....
वो तो पलकों का झपकना … भी बहुत वाजिब है …
उनको देखे … वो झपक जाए … तो बुरा लगता है ....
खुद तो दौलत की नज़ाकत .... में हँसी भूले हैँ ....
कोई भूखा … खुल के हँस जाए … बुरा लगता है ....
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