कवितायें : भावनाओं का एक अविरल प्रवाह
Poetic Rebellion .....
Sunday, March 15, 2015
इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।
मैं खुद के … एक से ज्यादा वजूद रखता हूँ …
इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।
अपने चारों तरफ की स्याह सियासत से डरा …
तमाम सच को दफ़न … खुद को रूह रखता हूँ |
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