Poetic Rebellion .....

Saturday, April 4, 2015

My First Encounter with my college ....

आज से कुछ साल   … कुछ महीने  … कुछ दिन पहले
हमारे बाबूजी ने हमारा एडमिशन एक कॉलेज में करवाया   ....

बड़े अरमानों के साथ , हमने बम्बइया फिल्मों के कॉलेजों की याद को दोहराया   ....
सोचा , कॉलेज में पहुंच कर बड़ा धमाल करेंगे   …
शाहरुख खान तो हम हैं ही   … कुछ कुछ होता है जैसा काम करेंगे   …
पढ़ना तो एक बहाना है  …
टाइट जींस  … मिनीस  … और स्लीवलेस वाली लड़कियोँ के साथ घुमा करेंगे  …

जब ट्रेन में काफी देर हो गयी   …  रात से भोर हो गयी  …
तो साथी पैसेंजर से पूछा, भाई  … ये मुरादाबाद अभी कितनी दूर है   …
साथी जो पूरे मुरादाबादी थे, हमारी तरफ नजर फिराई और बोले   ....
"दूर तो अभी हैगी   .... और दो चार स्टेशनों के बाद अभी आ रिया है "

सुनते ही मेरी हालत हो गयी लाज़वाब   …
यूँ लगा जैसे  …  लखनवी तहजीब का मुरादाबादी हरकतों से हो गया था वाद विवाद  …
मैंने उनसे पुछा  "ये हैगी और आ रिया है  … जा रिया है , का क्या कांसेप्ट है जनाब "
इससे पहले की वो हमें कुछ समझा पाते  .... हमारी क्यूरोसिटी की बत्ती को बुझा पाते   ....
रेलवे अनाउंसर की मधुर ध्वनि आई   .... नॉर्थर्न रेलवे मंडल , मुरादाबाद में आपका स्वागत करता है   ....

इससे पहले की मैं अपनी ख़ुशी का इज़हार कर पाता   ....
एनाउंसर के चेहरे की परिकल्पना पूरी कर के  .... उस रिज़र्व डिब्बे से उतर पाता   …
मेरी नाक में , किलो भर बदबू भर आई  …
ऐसा लगा जैसे किसी ने बम  फोड़ दिया  …  ट्रेन में खाया पिया  …  वहीँ छोड़ दिया  …

इस से पहले की कोई और तूफ़ान आता  .... मेरे शरीर की किसी और अंग को हिला पता   …
मुझे बदबू की वजह साफ़ समझ में आई   …
काम से काम १०० आदमी , ट्रैन के अगल बगल  … सुलभ शौचालय का आनद ले रहे थे   …
और ट्रेन  से उतरने वाले उसी मंद मंद हवा में सांस ले रहे थे   …

कि तभी एक होर्डिंग ने मेरा ध्यान खींचा    …
एक भाई साहब आधी चड्ढी चढ़ाये  … बड़े जतन से नारा संभाले भाग रहे थे   ....
और पीछे से दुसरे भाई साहब  … डंडा लेकर  .... उन्हें बैलों की तरह हाँक रहे थे   …
होर्डिंग पर लिखा था  …
"अपना शौचालय बनवायें   … गैरों के डंडे क्योँ खायें "

कॉलेज देखने की अभिलाषा अब तक मन में थी   ....
सो रिक्शे वाले भैया को "मैं हूँ ना " की स्टोरी सुनाई  …
सुनते ही उन्होंने   … शाहरुख से भी बढ़िया रिक्शा गाडी भगाई
पल पल मेरी धड़कने थमती जा रही थी  ....

गाडी, सिविल लाइन्स से पीएसी होते किसी पीली कोठी की तरफ बढाती जा रही थी  …
अँधेरा था की गहराता जा रहा था  …
भूतों का ख्याल मन को डरता जा रहा था  …

हनुमान चालीसा जपते जपते एक भीनी से खुशबू मन में समायी  ....
और पहले साईं बाबा की मूर्ति और फिर   ....
और फिर एक लाल लाल बिल्डिंग नजर आयी  …

भारी अचम्भे से जमुहाई लेते हुए  … उस अधनींदिया रिक्शे वाले से हमने पूछा   …
मुझे तो MIT जाना है    … ये लाल किला क्योँ ले आये भाई  …

उसका ज़वाब सुनते ही  … सारे अरमान बह गए  …
एक एक करके सारे ख्वाब ढह गए  …
by god   … क्या बना रखा है   …
मेन गेट पर दरवाजे की जगह   … लकड़ी का टट्टा लगा रखा है   …
क़दमों ने बहुत रोका   … दिमाग का दरवाजा रह रह के ठोका   …
पर हमने किसी तरह अपने दिल को समझाया   ....
रिक्शे का बिल चुकाया और आगे कदम बढ़ाया  ....

तो कुछ यूँ लगा   … जैसे दो चार सीनियर्स मैम मुझे निहार रही हैं  …
नींद में था शायद  … यूँ लगा जैसे लाइन मार रही हैं   …
मैंने सकुचाते हुए नयी बहु वाली वॉक सुरु ही की थी  …
की पीछे से किसी ने जोरदार झापड़ रसीद किया  …
गब्बर की आवाज आई  "क्योँ बे नाईन्टी कौन मारेगा " …

सुनते ही मेरा भेजा सटक गया   .... साला नाइंटी पर अटक गया   ....
मैंने मिनटों जुगत लगाई  … झापड़ से हिले हुए दिमाग की हर बत्ती जलायी  …
पर नाइंटी की गुथी न समझ में आई  …
पेन मारी   … पेंसिल मारी  .... पर साला नाइंटी कभी नहीं मारी  ....

खैर मार वार के सीनियर्स  हमें ले गए कैंटीन के पास   ....
जो जरा बहुत उम्मीद बची थी मेरी   … वो कैंटीन देखते ही हो गयी ख़ाक  …
कसम से क्या किस्मत पायी है  ....
सड़क से ढाबा उठा लायें हैं   …  कहतें हैं कैंटीन बनायी है   …

इन कुचले हुए अरमानों के साथ  … हमने मुम्बइआ फिल्मो को खूब गरियाया   …
सालों ने हमारी उमीदों में ऐसा बत्ती बम लगाया   …
चार सालों तक जिसे हमने अपनी पूँछ में लगाये लगाये घुमाया  ....

पर सच तो ये है .... की खूबसूरत थे वो साल   …
बेफिक्र   … बेझिझक  … दोस्तों के साथ किये गए वो बवाल
वो कॉलेज की रैगिंग से ले कर  … डिसिप्लिन कमेटी की मार   ....
वो नाईट आउट से ले कर उत्कर्ष तक के सारे त्यौहार   …
सच है खूबसूरत थे वो साल  … खूबसूरत थे वो साल





















Sunday, March 15, 2015

इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।

मैं खुद के … एक से ज्यादा वजूद रखता हूँ …
इतनी महंगाई है … इतना हकूक रखता हूँ ।
अपने चारों तरफ की स्याह सियासत से डरा …
तमाम सच को दफ़न … खुद को रूह रखता हूँ |

Saturday, January 17, 2015

जान क्या शय है ?

ख्वाहिशे यार में निकले  ....  तो जान क्या शय है ?
यूँ ही बेकार चली जाये  ……  तो बुरा लगता है  ....

वो तो पलकों का झपकना   … भी बहुत वाजिब है  …
उनको देखे  … वो झपक जाए  … तो बुरा लगता है  ....

खुद तो दौलत की नज़ाकत  ....  में हँसी भूले हैँ  ....
कोई भूखा  …  खुल के हँस जाए  … बुरा लगता है  ....

Tuesday, December 9, 2014

किसी मासूम को देखो … तो नजर यूँ रखना : Respect Women

किसी मासूम को देखो  …  तो नजर यूँ रखना   …
की उसे तेरी शराफत का एहसास न हो   …
बड़ी नाजुक है वो मासूम .... बहुत भोली है   ....
क्या पता उसको तेरी नज़रों का   … अंदाज न हो  ?

तेरी उठती हुई   … गिरती हुई   ...  पलकों की तहें   …
जो तेरी साजिशों को  .... सरेआम बयां करती हैं   …
वो सिमटती है खुद   ....  बचा के नज़र  .... यूँ तुझसे  ....
अपने हंसने से कहीं  … खुद वही बदनाम न हो   …

वैसे ये शाम का अच्छा है शग़ल  … लोगों का  …
कई चौराहों पर.... वो रोज़ खड़े रहते हैं   …
आँखें सिकती हैं  … बिना डर  के बेहयाई से   ....
जैसे हर जिस्म  .... जो गुजर था अभी  .... "नंगा हो "  …

खुद को इतना न बदल  … कि तेरी पहचान मिटे  ....
बहकी इन आदतों से यूँ  तेरा ईमान मिटे  …
अब तो रुक  ....  और बदल दे ये नज़र के नक़्शे   …
इससे पहले की तेरा सच  … और ये इंसान मिटे  ....


Thursday, December 19, 2013

A political Cyclone

बीजेपी बहुत व्यस्त है … कांग्रेस बहुत पस्त है … 
और लोग कहते हैं … केजरी जबर्दस्त है … 
इन सब के बीच दिल्ली कि जनता … 
बेचारी दिल्ली कि जनता … बहुत त्रस्त है … । 

लोग फेसबुक पे लड़ते हैँ … दोस्तों से झगड़ते हैं … 
बीजेपी अच्छी है … केजरी सच्चा है … 
राहुल तो अभी कच्चा है (which is accepted without fight  )
ऐसी बातों पर सर पटकते हैं … । 

सारे के सारे पॉलिटिशियन हो गए हैं …
इधर उधर से … नेट से … जो मिलता है … चेपते हैं …
दो चार बड़े वाले ऐसे भी हैं … जो फेसबुक खोलते हैं …
पहली पोस्ट का, लास्ट कमेंट पढ़ के …
उसे लिखने वाले कि सर … देश द्रोह का मुकदमा ठोकते हैं ।

पिछले महीने मोदी का तूफ़ान चल रहा था …
इस महीने केजरी साइक्लोन बन गए हैं …
और हम सब , अपनी अपनी टाइम पास कि , रंग बिरंगी पतंगों को लिए ....
इस पोस्ट से उस पोस्ट … उस पोस्ट से इस पोस्ट … पेंच लड़ाए फिरते हैं …

चुनावी पत्रकारिता का भी बाजार गर्म है …
सच का पता करना … हर चूजे का अब धर्म है ....
कहाँ कहाँ से फ़ोटो लाते हैं … लगाते हैं … हटते हैं …
अब तो चाय कि चुस्कियों में … हर चाय वाले में मोदी ही नजर आते हैं ।

चुनाव के चक्कर में … लड़कियों ने फ़ोटो लगानी छोड़ दी हैं ....
जैसे क्रिकेट से पहले मूवी नहीं रिलीज़ होती थी …
वैसे ही लाइक के चक्कर में फ़ोटो रिलीज़ होनी बंद हो गयी हैं
लड़कियां इस पोलिटिकल कांस्पीरेसी बता रही हैं ....
और अगला धरना फेसबुक पे देने जा रही हैं ....

अगर यही माहोल रहा है … तो फेसबुक सुनसान हो जाएगा …
चुनाव तो ६ महीने में ख़तम हो जायेंगे …मगर ईमान बईमान हो जाएगा …
गर्लफ्रेंड तो फ्रैन्डलिस्ट में रह नहीं जाएंगी ....
और आखिरकार आर्टिकल ३७७ का काम हो जाएगा ....

आखरी लाइन से खुश तो तुम बहुत होगे लल्लन .... 

Monday, December 16, 2013

NAAP Party

तू मेरा काम कर  … मैं तेरी नाँव हूँ   ....
पेड़ है स्वार्थ का  … मतलबी छावं हूँ   …
आज कर दे मदत  … पर न उम्मीद रख  …
गिरगिटों से भरा है  .... मैं वो गावँ हूँ  …

तू है मासूम तो  … सुन  … ये गाली है एक  …
इस ज़माने कि फितरत पे  … कालिख है एक   …
कोई कुत्ता है गर  … तू कमीने सा बन   …
हरकतों से जता  … तेरा वालिद हूँ मैं  …