Poetic Rebellion .....

Sunday, January 19, 2020

हमारा करवाचौथ

चाँद की महफ़िल  ... लाख सितारे
हर कोई चुप के उसे निहारे  ...

चंचल चंचल   ...  कोमल कोमल  ... हौले हौले खुद को सँवारे   ...
कभी चहकती   ... कभी बहकती  ... बन ठन कर वो मुझे पुकारे   ...

नम  होठों पे प्यास दबाये  ....  पगली प्यासी रसम निभाये   ...
कभी झिड़कती  ...  कभी भड़कती  ..  कभी शर्म से खुद को लजाये  ...


दौड़ दौड़ कर चाँद निहारे   ... चंदा जालिम नजर ना आये  ...
छुप छुप जाए  ... उसे सताये

फिर वो बदल का छुप जाना  ... चाँद का फिर वो सामने आना  ...
हौले से उसका मुस्काना  ... हाथ खींच कर मुझे बुलाना  ... चाँद दिखाना  ... कुछ हो जाना  ...

पूजा की सब रस्में उस पर  .... थाली और चलनी से मुझ पर  ...
चाँद देखना   ...चाँद दिखाना  ...

फिर दिन का वो पहला निवाला  ... मुझ से खाना  ... मुझे खिलाना   ...

हाय ये नटखट रस्में सारे   ...
प्यार भरी ये कसमें सारी  ...

और फिर सपनो का सो जाना   ... चाँद का बस यूँ हसते जाना
आँखों से मुझ से कह जाना  .... साथ ही रहना  ... साथ निभाना
सात जनम तक बस यूँ ही तुम  ... प्यार से रहना   ... प्यार निभाना  ...
और फिर सपनो का सो जाना   ...  और फिर सपनो का सो जाना  

आज की पत्रकारिता ....

कुछ आँखें नम हैं    ....  कुछ आँखों में घोर क्रंदना बाकी है    …
कुछ आहात हैं … कुछ भौचक्की … कहीं गीली सुर्ख उदासी है  ....

कुछ खोये हैं दोहराने में   … वो जीवन साथ बिताया जो   …
कुछ मूक व्यथित से खड़े हुए   … इस सच को अभी पचाने में   …

पर कई धड़े है ऐसे भी   … जिनको किंचित आवेग नहीं  …
जो लाभ देखते अवसर का  ....  मानवता का आभास नहीं   ....

ये मृत्यु नहीं उनकी खातिर  .... एक मौसम है  … एक मौका है   …
इस राजनीति के दंगल में   … जीवन क्या है   … एक सौदा है  ....

चेहरे अनेक .... साधन अतुलित  .... उनकी पहचान पहेली है   …
वो न्यूज़ रूम से आये है   … या खाकी वर्दी ले ली है  …

खद्दर तो मैली थी ही पर … अब पब्लिक का डर ज्यादा है  ....
काँधे पर सर रखने वाला   …ना जाने किसका प्यादा है   …

हाँ आज तुम्हारे प्राइम टाइम पर  … मेरी तस्वीर दिखाओगे …
हाँ आज सैकड़ों के हाथों में कैंडल होंगी   … सड़कों पर   …
हाँ मुझको भी जेसिका   … निर्भया   … जैसा एक ओहदा  … दोगे  ....
और संसद में होगा एक मौन  …