Poetic Rebellion .....

Sunday, October 8, 2017

कुछ किस्सों का आवारापन .....

कुछ लफ्जों की तैयारी में  .... कुछ लम्हों को खो देना.....
कुछ किस्सों का आवारापन   .... और कुछ रिश्तों का रो देना  ....

हम अक्सर जस्बातों का एक बोझ उठाये फिरते हैं   .....
हर करवट में उन्हें समेटे  हैं  .... और साथ लिटाये रोते हैं   ....

कुछ यूँ ही जस्बाती नज्में   ...  लब  पे राज़ बिठाती  हैं   ...
और कुछ मासूम शरारत यूँ ही   .... सीना छलनी कर जाती हैं  ....

और पगली नींद नहीं आती   ... जब  .... लम्हें याद चुराते हैं  ...
पलकों को मूँद  ....  मोह्बत की  ... उन गलियोँ में  ले कर  जाते हैं  ....

कुछ पत्तों का सूखापन  उनकी आवाज़ न बन पता   ....
और कुछ कलियोँ का खिल जाना  .... उन पर भरी सा पड़  जाता   ...

कुछ ऐसा ही होता है जब  .... एक उम्र गुजर सी जाती है   ...
और एक पीढ़ी की याद को बस .... तारीखों से दोहराती है   ....  
सपनों में पागलपन है और   .... जीवन में आपाधापी है  …
कुछ मंजिल पीछे छूट गयी  … कुछ आगे आनी बाकी है ।

कुछ चेहरों से टकराये  … तो कुछ रिश्तों का एहसास हुआ  …
और कुछ रिश्ते जो पहले के  … वहां किश्त चुकानी बाकी हैं  ।

इतनी लम्बी फेहरिस्त  … की तन्हाई भी हमको छोड़ गयी  …
और अंतर्मन की बात  .... तो बस कोरा एक ज्ञान किताबी है ।

पर फिर भी इतनी भीड़  .... भरा सैलाब  … चले अनजान डगर  …
तब समझा  … क्योँ कहते थे… रघुकुल की रीति पुरानी है ।