Poetic Rebellion .....

Sunday, April 7, 2013

जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

शाम बाँहों में थी .. आँख को नम किये ..
जैसे हर पल मुझे रोकना चाहती ..
उसके चहरे पे छाई कैसी नमी ..
जैसे नज़रों से कुछ टोकना चाहती ..

आइये पास से कुछ नज़ारे करें ..
दूर से ही यूँ कब तक इशारे करें ..
कल तो नज़रों से भी दूर हो जायेंगी ..
मेरी बाहें तुम्हें .. थामना चाहती ..

एक ही सांस में तुमको भर लेंगे हम ..
अपनी धड़कन की हर एक सदा में सनम
उसपे पल पल ये एहसास होगा तेरा ..
दूर रह के भी तू साथ है आज भी ...

अब तो कुछ भी नहीं आंसुओं के परे ..
छोड़ कर क्या निशानी चला जाऊं में ..
ताकी हर पल तू मुझको भी दोहराये यूँ ..
जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...
अपनी रातों को भी हम तेरे नाम लिखते हैं ...

कैसे कैसे हैं ख्यालात ये दिल मैं मेरे ...
आँसूं बन बन के छलकते हैं ये जस्बात तेरे ...
करवटों में ये पूरी रात गुजर जाती है ..
मन का अब चैनो अमन तेरे नाम लिखते हैं ..

कैसे जर्रे हैं भटकने भी नहीं देते हमको ..
कभी तो देखते हैं तुम को और कभी गम को ..
क्योँ अपने दरम्यान ही .. बंधनों की दुरी है ..
इन पनाहों को ... आखिरी सलाम लिखते हैं ...

कसमसाहट से भरी ये घडी गुजर जाए ..
भले सांसों की मेरी हर लड़ी बिखर जाए ...
तनहा रह के ये जिंदगी नहीं बिताएंगे ..
लो कोरे दिल पे आज तेरा नाम लिखते हैं ...

चलती रहती है कलम और कलाम लिखते हैं ...
अपनी रातों को भी हम तेरे नाम लिखते हैं ...