Poetic Rebellion .....

Friday, June 14, 2013

अजनबी शहर की बात

अजनबी शहर में ... अजनबी रास्ते ..
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ... ।

जब परेशान था .. दिल का मंजर मेरे ..
तब हवाओं ने सरगम की धुन छेड़ दी ... ।
थी तड़प जब निगाहों मैं ख़्वाबों की कुछ ..
नींद बैरन हुई .. जागते हम रहे .. ।

इस पराये शहर की हवा में मुझे ...
एक घुटन का है अहसास होता रहा ..।
उसपे गम ये जुदाई का पागल किये ..
होंठ प्यासे हुए ... हम तरसते रहे ..।

Thursday, June 13, 2013

Nitish Kumar To Narendra Modi :

तुम्हारे हक में हम बोलें ... तो क्या बोलें ...
की अब चुपचाप रह कर ... रह गुजर आसन लगती है ..।

तुम्हारी जिस अदा पर ... और खता पर .. हम तुम्हारे थे…
वही बातें ....तुम्हारे हर्फ़ पर इल्जाम लगती हैं ... ।

तुम्हारे साथ चल कर ... मंजिलों का अब भरोसा क्या ...
की अब गैरों की बाहें थामनी ... आसन लगती है ...

Dont do this Sir... :)

Saturday, June 8, 2013

कुछ कही ... अनकही सी .....

आज फिर से मैं उसी कमरे में बैठ हूँ ...जिसके बारे में मेरे घर में कहा करते थे,
पुरोहित जी ने कहा है की यहाँ .. मत बैठो .. मन में शादी के ख्यालात उभर आयेंगे |

तब ये लगता था की बेवजह हैं बातें सारी ... कुछ नहीं होता है इन बेफुजूल किस्सों का ..
आज जब खुद पे नजर डालता हूँ तो मुस्कुराता हूँ .... सब को मालुम था .. पहले से ही .. की मैं ऐसा हूँ |

या ये कुसूर है ... इस बेजुबान कमरे का .., जिसकी  आहट में भी ...बस इश्क के झोंके आये ..
जिसने साँसों में मेरी इतनी मुहब्बत भर दी .. की जब भी आंखें झुकी ... बस हुश्न  से ही टकराए  |


To Be Contd.....

Thursday, June 6, 2013

A life which goes on....

अभी तुम्हारे साथ तो कुछ पल बीते हैं ...
अभी तो जीने को ये जिंदगी बाकी है ...
...
अभी तो बस हम चन्द कदम ही साथ चलें हैं ...
अभी तो मिलने को ये गुलिस्तान बाकी हैं ..

अभी तो हमने छुट पुट साज संभाले हैं ..
अभी न जाने कितने रिश्ते बाकी हैं ..

अभी तो खुशियों की बस डोर बनायीं है ..
अभी तो इसमें जुड़ते जाना बाकी है ..

अभी तो धड़कन ने उस धड़कन को पहचाना है ...
अभी तो सात जनम का साथ निभाना बाकी है ...

अभी तो सात जनम का साथ निभाना बाकी है ...
अभी तो जीने को ये जिंदगी बाकी है ...
 

Saturday, June 1, 2013

एक खामोश सी चाहत ..

कुछ ख्वाब हैं .... कुछ हसरतें ...कुछ सिलवटें ...पलकें ..लिए ..
है आरजू ...तारों ...की भी .. और चाँद चेहरे पे चले ..
पर दरम्यान ...कुछ दर्द हैं ...हालत के कुछ रात के ..
है एक दिन की चांदनी ...ये अब ढले या तब ढले ..

उफ़ क्या नसीबा है मेरा .... पैरों में है ..थिरकन भरी ..
सिहरन लिए हैं ...उंगलियाँ ..हर शख्स को छूती हुई ..
हर रूह से मिलती हुई ... हर लफ्ज में जलती हुई ..
उफ़ क्या शरारत ऐ खुद ... ये क्या किया मालिक मेरे ...
जब जिस्म इतना सर्द है .. जस्बात क्योँ दहका दिए ..

न अश्क हैं ..न दर्द है ..फिर धडकनें रुखी सी क्योँ ..
जब सब खड़े हैं भीगते .. फिर रूह है सूखी सी क्योँ ..
या मौत दे या जिंदगी ... ये बीच का क्या माजरा ..
मासूम से ख़्वाबों को क्योँ .. है देखता मिटते हुए ..

ये बेजिझक माहौल ..हम पे बेहयाई का जुनूं ..
यूँ झूम कर ...यूँ नाचकर .. है मिल रहा सब को सुकूं ..
पर रूह फिर भी चुप है क्योँ ... खामोश सी हंसती हुई ..
नज़रों की सारी ख्वाहिशें .. पलकों से क्योँ ढकती हुई ..

चल उठ ये बाहें ले .. की हम सब साथ में सजदा करें ..
मुमकिन तो है ये भी ... की कल हम फिर मिलें या न मिलें ..
फिर क्योँ झिझकना ..जिंदगी से .. क्या शिकायत आप से ..
है एक दिन की गुफ्तगूँ .. ये अब ढले या तब ढले ..


Love .... In a poetic way ..

मेरी चाहत में कैसी हैं ... ये दूरियाँ ...
पास बैठी हो तुम ... पर ये मजबूरियां ...
बेवजह ये नहीं ... बेखबर तुम नहीं ..
होठ चलते हैं पर ..कुछ वो कहते नहीं ..
चोरी चोरी से यूँ ... चुपके चुपके से यूँ ..
देखता हूँ तुम्हें ... ऐसे डर डर के क्योँ ..

मुझको छूती हुई ... तेरी कमसिन हंसी ..
बातों बातों में आँचल की नरमी छुई ..
उफ़ ये क्या हो रहा है ... ये क्या राज है ..
सारा माहौल ऐसे क्योँ मोहताज है ...


जिस्म तेरी छुअन से हैं जलता हुआ ...
आंसुओं से धुवाँ हैं निकलता हुआ ...
ये निगाहें ह्या ... तेरा ल्फ्जें बयां ...
तेरी हर एक अदा .. पे खुद है फ़िदा ...
फिर भला क्योँ न मैं इश्क तुझ से करूँ ...
चाहए दुनिया ... इसे माने ..मेरी खता ...

कवितायें ... जो अनसुनी हैं ... अनकहीं हैं ..

ये ख़्वाबों का सागर .... ये चाहत की कश्ती ...
बड़े हौले हौले बहा ले चलेगे ..
यूँ तूफानी लहरों से डरना भी कैसा ...
इन्हें भी मोहब्बत ... सिखाते चलेंगे ...
इन्हें भी मोहब्बत ... सिखाते चलेंगे ...

कई बार आँखों में परवाज छाई ...
धडकते दिलों से ये आवाज आई ...
ये मायूस चेहरा ... ये बचकानी बातें ..
ये जस्बात कब तक छुपाते चलेंगे ...
ये जस्बात कब तक छुपाते चलेंगे ...

एक कविता .... अतीत के पन्नो से ..

थक गया है बदन .... थक गयी है नजर…
पर न ख़्वाबों का है .... आज भी कुछ पत।
जाने किस रात की कौन सी नींद तक ...
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..

हर गली हर सहर .. हर नयी शाम से।
हर कली ..फूल ... पलकों की हर छावं से ..
फिर से उम्मीद की सांसें हैं मांग ली ..
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...