Poetic Rebellion .....

Sunday, April 7, 2013

जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

शाम बाँहों में थी .. आँख को नम किये ..
जैसे हर पल मुझे रोकना चाहती ..
उसके चहरे पे छाई कैसी नमी ..
जैसे नज़रों से कुछ टोकना चाहती ..

आइये पास से कुछ नज़ारे करें ..
दूर से ही यूँ कब तक इशारे करें ..
कल तो नज़रों से भी दूर हो जायेंगी ..
मेरी बाहें तुम्हें .. थामना चाहती ..

एक ही सांस में तुमको भर लेंगे हम ..
अपनी धड़कन की हर एक सदा में सनम
उसपे पल पल ये एहसास होगा तेरा ..
दूर रह के भी तू साथ है आज भी ...

अब तो कुछ भी नहीं आंसुओं के परे ..
छोड़ कर क्या निशानी चला जाऊं में ..
ताकी हर पल तू मुझको भी दोहराये यूँ ..
जैसे तू भी मुझे ढूंढना चाहती ..

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