For A Change ...
चाहता तू भी तो है. ...हर सांस में उभारना ...
पर द्वन्द तेरे मन का .. तुझे पीछे खीचता है।
की लोग क्या कहेंगे .... गर हार तूने पायी ...
और हार का ये डर ..की तूने जीत भी गवाईं ।
ख्वाहिश में था समंदर .. दरिया में आ के सिमटा ..
छूना था आसमान को ... और बादलों में भटका ..
ये शर्म तेरी तुझको ... शर्मिन्दगी ही देगी ..
गर जीतना है तुझको .. बेशर्म बन के लड़ना ..
चाहता तू भी तो है. ...हर सांस में उभारना ...
पर द्वन्द तेरे मन का .. तुझे पीछे खीचता है।
की लोग क्या कहेंगे .... गर हार तूने पायी ...
और हार का ये डर ..की तूने जीत भी गवाईं ।
ख्वाहिश में था समंदर .. दरिया में आ के सिमटा ..
छूना था आसमान को ... और बादलों में भटका ..
ये शर्म तेरी तुझको ... शर्मिन्दगी ही देगी ..
गर जीतना है तुझको .. बेशर्म बन के लड़ना ..
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