Poetic Rebellion .....

Saturday, October 22, 2016

कुछ पन्ने शायद ख़ाक हो गये

पहले अक्सर हम बेमतलब ही मतलब का कुछ करते थे ....
पहले हर शाम में गलियों में कुछ यार हमारे मिलते थे ....
पहले यूँ ही बातों में हर बात निकल कर आती थी ...
पहले जस्बात भटकते थे और वक़्त सिमट सा जाता था ...

कुछ पन्ने शायद ख़ाक हो गये .... बट्टूए के मैले नोटों में
कुछ बातें शायद बेज़ा हैं इन बहुमंजिला कोठों में ....
कुछ पत्ते अब भी उड़ते हैं ... तो घर की छत याद आती है...
और बारिश की मिटटी की सुगंध सांसों को चुभ से जाती है ।

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