Poetic Rebellion .....

Sunday, October 8, 2017

सपनों में पागलपन है और   .... जीवन में आपाधापी है  …
कुछ मंजिल पीछे छूट गयी  … कुछ आगे आनी बाकी है ।

कुछ चेहरों से टकराये  … तो कुछ रिश्तों का एहसास हुआ  …
और कुछ रिश्ते जो पहले के  … वहां किश्त चुकानी बाकी हैं  ।

इतनी लम्बी फेहरिस्त  … की तन्हाई भी हमको छोड़ गयी  …
और अंतर्मन की बात  .... तो बस कोरा एक ज्ञान किताबी है ।

पर फिर भी इतनी भीड़  .... भरा सैलाब  … चले अनजान डगर  …
तब समझा  … क्योँ कहते थे… रघुकुल की रीति पुरानी है ।



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