कुछ लफ्जों की तैयारी में .... कुछ लम्हों को खो देना.....
कुछ किस्सों का आवारापन .... और कुछ रिश्तों का रो देना ....
हम अक्सर जस्बातों का एक बोझ उठाये फिरते हैं .....
हर करवट में उन्हें समेटे हैं .... और साथ लिटाये रोते हैं ....
कुछ यूँ ही जस्बाती नज्में ... लब पे राज़ बिठाती हैं ...
और कुछ मासूम शरारत यूँ ही .... सीना छलनी कर जाती हैं ....
और पगली नींद नहीं आती ... जब .... लम्हें याद चुराते हैं ...
पलकों को मूँद .... मोह्बत की ... उन गलियोँ में ले कर जाते हैं ....
कुछ पत्तों का सूखापन उनकी आवाज़ न बन पता ....
और कुछ कलियोँ का खिल जाना .... उन पर भरी सा पड़ जाता ...
कुछ ऐसा ही होता है जब .... एक उम्र गुजर सी जाती है ...
और एक पीढ़ी की याद को बस .... तारीखों से दोहराती है ....
कुछ किस्सों का आवारापन .... और कुछ रिश्तों का रो देना ....
हम अक्सर जस्बातों का एक बोझ उठाये फिरते हैं .....
हर करवट में उन्हें समेटे हैं .... और साथ लिटाये रोते हैं ....
कुछ यूँ ही जस्बाती नज्में ... लब पे राज़ बिठाती हैं ...
और कुछ मासूम शरारत यूँ ही .... सीना छलनी कर जाती हैं ....
और पगली नींद नहीं आती ... जब .... लम्हें याद चुराते हैं ...
पलकों को मूँद .... मोह्बत की ... उन गलियोँ में ले कर जाते हैं ....
कुछ पत्तों का सूखापन उनकी आवाज़ न बन पता ....
और कुछ कलियोँ का खिल जाना .... उन पर भरी सा पड़ जाता ...
कुछ ऐसा ही होता है जब .... एक उम्र गुजर सी जाती है ...
और एक पीढ़ी की याद को बस .... तारीखों से दोहराती है ....
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