थक गया है बदन .... थक गयी है नजर…
पर न ख़्वाबों का है .... आज भी कुछ पत।
जाने किस रात की कौन सी नींद तक ...
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..
यूँ ही चलता चलेगा .... यही सिलसिला ..
हर गली हर सहर .. हर नयी शाम से।
हर कली ..फूल ... पलकों की हर छावं से ..
फिर से उम्मीद की सांसें हैं मांग ली ..
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...
जिनसे मंजिल का हूँ मैं पता पूछता ...
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