Poetic Rebellion .....

Sunday, October 7, 2012

अपने अश्कों से आज खुद को ही रुला आया ..

यादों के साज से सरगम का एक सितार आया ...
आखिरी साल की सुबह को ये ख्याल आया ..

सुबह की ओस में, क़दमों के तले क्या ये दबा ..
एक नन्ही से कली का हुआ पूरा ये सफ़र ...
मिटना था उसका मुकद्दर मुझसे क्या भूल हुई..
कल जो मिटना था उसे आज ही मिटा आया ..

चंद लम्हें जो जिए और ..एक साया सा दिखा ..
मेरे क़दमों में एक हलकी सी हलचल सी हुई..
जो बाधा उसकी तरफ ... एक निगाह थी डाली ..
उसका सारा वजूद बर्फ सा पिघल आया ..

पर्त दर पर्त जमी जाती है .. दिल पे ये बर्फ ..
और फिर भीगी निगाहों से ये बरसती है ..
किसी की जुस्तजूं में कैसे आज मैं भीगा ..
अपने अश्कों से आज खुद को ही रुला आया ..

मैं था साँसों को तरसता ...तभी टुटा तारा ..
और ख्वाबों का यकीं बन के मेरे पास आया ..
यादों के साज से सरगम का एक सितार आया ...
आखिरी साल की सुबह को ये ख्याल आया ..

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