Poetic Rebellion .....

Saturday, June 1, 2013

एक खामोश सी चाहत ..

कुछ ख्वाब हैं .... कुछ हसरतें ...कुछ सिलवटें ...पलकें ..लिए ..
है आरजू ...तारों ...की भी .. और चाँद चेहरे पे चले ..
पर दरम्यान ...कुछ दर्द हैं ...हालत के कुछ रात के ..
है एक दिन की चांदनी ...ये अब ढले या तब ढले ..

उफ़ क्या नसीबा है मेरा .... पैरों में है ..थिरकन भरी ..
सिहरन लिए हैं ...उंगलियाँ ..हर शख्स को छूती हुई ..
हर रूह से मिलती हुई ... हर लफ्ज में जलती हुई ..
उफ़ क्या शरारत ऐ खुद ... ये क्या किया मालिक मेरे ...
जब जिस्म इतना सर्द है .. जस्बात क्योँ दहका दिए ..

न अश्क हैं ..न दर्द है ..फिर धडकनें रुखी सी क्योँ ..
जब सब खड़े हैं भीगते .. फिर रूह है सूखी सी क्योँ ..
या मौत दे या जिंदगी ... ये बीच का क्या माजरा ..
मासूम से ख़्वाबों को क्योँ .. है देखता मिटते हुए ..

ये बेजिझक माहौल ..हम पे बेहयाई का जुनूं ..
यूँ झूम कर ...यूँ नाचकर .. है मिल रहा सब को सुकूं ..
पर रूह फिर भी चुप है क्योँ ... खामोश सी हंसती हुई ..
नज़रों की सारी ख्वाहिशें .. पलकों से क्योँ ढकती हुई ..

चल उठ ये बाहें ले .. की हम सब साथ में सजदा करें ..
मुमकिन तो है ये भी ... की कल हम फिर मिलें या न मिलें ..
फिर क्योँ झिझकना ..जिंदगी से .. क्या शिकायत आप से ..
है एक दिन की गुफ्तगूँ .. ये अब ढले या तब ढले ..


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