मेरी चाहत में कैसी हैं ... ये दूरियाँ ...
पास बैठी हो तुम ... पर ये मजबूरियां ...
बेवजह ये नहीं ... बेखबर तुम नहीं ..
होठ चलते हैं पर ..कुछ वो कहते नहीं ..
चोरी चोरी से यूँ ... चुपके चुपके से यूँ ..
देखता हूँ तुम्हें ... ऐसे डर डर के क्योँ ..
मुझको छूती हुई ... तेरी कमसिन हंसी ..
बातों बातों में आँचल की नरमी छुई ..
उफ़ ये क्या हो रहा है ... ये क्या राज है ..
सारा माहौल ऐसे क्योँ मोहताज है ...
जिस्म तेरी छुअन से हैं जलता हुआ ...
आंसुओं से धुवाँ हैं निकलता हुआ ...
ये निगाहें ह्या ... तेरा ल्फ्जें बयां ...
तेरी हर एक अदा .. पे खुद है फ़िदा ...
फिर भला क्योँ न मैं इश्क तुझ से करूँ ...
चाहए दुनिया ... इसे माने ..मेरी खता ...
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